......मैंने पहले बोलना सीखा ...अम्मा... !
फिर लिखना सीखा.... क ख ग a b c 1 2 3 ...
फिर शब्द बुने !
फिर भाव भरे !
.... मैं अब कविता गुनता हूँ , कहानी गड़ता हूँ ..
जिन्हें दुनिया पढ़ती है ..खो जाती है .. रोती है ... मुस्कराती है ...हंसती है ..चिल्लाती है ...
.....मुझे इनाम ,सम्मान , पुरस्कार से अनुग्रहित करती है ...!
.....और मैं किसी अँधेरे कोने में बैठकर,
....खुदा के सजदे में झुककर ,
धीमे से बोलता हूँ ...अम्मा !!!
विजय
फिर लिखना सीखा.... क ख ग a b c 1 2 3 ...
फिर शब्द बुने !
फिर भाव भरे !
.... मैं अब कविता गुनता हूँ , कहानी गड़ता हूँ ..
जिन्हें दुनिया पढ़ती है ..खो जाती है .. रोती है ... मुस्कराती है ...हंसती है ..चिल्लाती है ...
.....मुझे इनाम ,सम्मान , पुरस्कार से अनुग्रहित करती है ...!
.....और मैं किसी अँधेरे कोने में बैठकर,
....खुदा के सजदे में झुककर ,
धीमे से बोलता हूँ ...अम्मा !!!
विजय
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, मदनलाल ढींगरा जी की १०६ वीं पुण्यतिथि - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसुन्दर भाव ..अच्छी कविता
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